नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने । विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेंद्रता ॥
भारत के प्रजाजीवन एवं सामाजिक इतिहास तथा वर्तमान यथास्थिति के गहरे अभ्यास और उसकी समस्याओं के समाधान हेतु सतत चिंतन एवं मंथन के परिणाम से, श्री किशोर मकवाना ने इन ३० से अधिक पुस्तको की रचना एवं निर्माण किया है । इन कृतियों में भारत के प्राचीन सांस्कृतिक एवं राजनीतिक गतिविधियों कि झलक देखने को मिलती है।